अब ये घर हि तो है अकेले हुं मैं कोहि नहिं है
और ये सफर भि तो है तन्हां हुं मैं कोहि नहिं है ।
ये अंगना देखिए सुनि सुनि है जैसे मेरा मन
वो जुगनु देखिए धिमी धिमी है जैसा ये जीवन
सितारों तो है मगर दुर मेरे पास् कोहि नहिं है
और ये सफर भि तो है तन्हां हुं मैं कोहि नहिं है ।
एक हसिन वक्त था कभि मेरे ईन हाथोंमें भि
लोग थे सब अपने हि तो थे हमारे साथमें भि
फिर वक्तके साथ साथ सब चले कोहि नहिं है
और ये सफर भि तो है तन्हां हुं मैं कोहि नहिं है ।
कहिले काहिं यस्तै गर्न मन लाग्छ - आफ्नो प्यारो भाषा हुंदा हुंदै हिन्दीमा पनि लेख्न मन लाग्छ । हिन्दीमा राम्रो लेख्ने त परैको कुरा हो र पनि रहर लाग्छ र लेखिटोपलेको है भएन भने खिसी ट्युरी नगरिदिनु होला ।
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